सप्पुरिसाणं दाणं, कप्पतरूणं फलाण सोहा वा ।
लोहीणं दाणं जदि, विमाणसोहा-सवं जाणे ॥26॥
सत्पुरुषाणां दानं कल्पतरूणां फलानां शोभा इव ।
लोभिनां दानं यदि विमानशोभाशवं जानीहि॥
अन्वयार्थ : सत्पुरुषों द्वारा दिया दान कल्पवृक्ष के फलों की शोभा की तरह होता है, किन्तु लोभी द्वारा यदि दान दिया जाता है तो उसे विमान-शोभा वाले शव की तरह जानें ॥26॥