जंतं मंतं तंतं परिचरिदं पक्खवादपियवयणं ।
पडुच्च पंचमयाले भरहे दाणं ण किंपि मोक्खस्स ॥28॥
यन्त्रं मन्त्रं तन्त्रं परिचरितं पक्षपातप्रियवचनम् ।
प्रतीत्य पञ्चमकाले भरते दानं न किमपि मोक्षाय॥
अन्वयार्थ : (इस) पंचम काल में भरत क्षेत्र में यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र, परिचर्या(सेवा), पक्षपात-प्रदर्शन, प्रियभाषण । इनके द्वारा प्रतीति (विश्वास) पैदा कर (उनसेप्रभावित होकर) किया गया किसी प्रकार का भी दान मोक्ष का कारण नहीं होता (संसारका कारण होता है) ॥28॥