धणधण्णादि समिद्धे सुहं जहा होदि सव्वजीवाणं ।
मुणिदाणादि समिद्धे सुहं तहा तं विणा दुक्खं ॥30॥
धनधान्यादौ समृद्धे सुखं यथा भवति सर्वजीवानाम् ।
मुनिदानादौ समृद्धे सुखं तथा तद्विना दु:खम्॥
अन्वयार्थ : धन-धान्य आदि की समृद्धि होने पर जैसे सभी जीवों को सुख मिलताहै, वैसे ही मुनि-दान आदि की समृद्धि (प्रचुरता) से सुख मिलता है और वह दानादि न होतो दु:ख मिलता है ॥30॥