पत्त विणा दाणं य सुपुत्त विणा बहुधणं महाखेत्तं ।
चित्त विणा वय-गुण-चरित्तं णिक्कारणं जाणे ॥31॥
पात्रं विना दानं च सुपुत्रं विना बहुधनं महाक्षेत्रम् ।
चित्तं विना व्रत-गुण-चारित्रं निष्कारणं जानीहि॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार सुपुत्र के बिना बहुत सारा धन तथा बड़े-बड़े क्षेत्र (बहुतसारी जमनी-जायदाद) निरर्थक हैं तथा भाव के बिना व्रत, गुण व चारित्र का पालन भीनिरर्थक होता है, उसी प्रकार सत्पात्र के बिना दान देना भी निरर्थक होता है ॥31॥