जिण्णुद्धार-पदिठ्ठा-जिणपूया-तित्थवंदणवसेसधणं ।
जो भुंजदि सो भुंजदि जिणदिठ्ठं णरयगदिदुक्खं ॥32॥
जीर्णोद्धार-प्रतिठा-जिनपूजा-तीर्थवन्दनअवशेषधनम् ।
यो भुंक्ते स भुंक्ते जिनदिष्टं नरकगतिदु:खम्॥
अन्वयार्थ : जीर्णोद्धार, प्रतिठा, जिनपूजा, तीर्थवन्दना (तीर्थयात्रा) । इन कार्यों के (लियेदान की गई सम्पत्ति आदि के) अवशिष्ट धन को जो भोगता (अपने लिये उपयोग करता) है, वहनरक-गति के दु:ख को भोगता अर्थात् उपार्जित करता है । ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है ॥32॥