इच्छिदफलं ण लब्भदि, जदि लब्भदि सो ण भुंजदे णियदं ।
वाहीणमायरो सो, पूयादाणादिदव्वहरो ॥34॥
इच्छितफलं न लभते, यदि लभते स न भुंक्ते नियतम् ।
व्याधीनामाकर: स पूजादानादि द्रव्य हर:॥
अन्वयार्थ : पूजा-दान आदि (निर्माल्य) द्रव्य का हरण करने वाला इच्छित फलको प्राप्त नहीं करता और यदि करता भी है तो उसका भोग नहीं कर पाता । यह निश्चित है ।वह व्याधियों का घर बन जाता है (अर्थात् उसे अनेक व्याधियाँ घेर लेती हैं) ॥34॥