गदहत्थपादणासिय-कण्णउरंगुल विहीण दिठ्ठीए ।
जो तिव्वदुक्खमूलो, पूयादाणादिदव्वहरो ॥35॥
गतहस्तपादनासिकाकर्ण-उरुअंगुल: विहीनो दृष्ट्या ।
यत्तीव्रदु:खमूलम्, पूजादानादिद्रव्यहर:॥
अन्वयार्थ : पूजा-दान आदि से सम्बन्धित द्रव्य को हड़पने वाला हाथ, पाँव,नाक, कान, छाती, अएगुलियों से रहित तथा दृष्टिहीन (भी) होता है, जो (वैसा होना)उसके लिए तीव्र दु:ख का (ही) कारण बनता है ॥35॥