णरइ-तिरियाइ-दुगदी, दारिद्द-वियलंग-हाणि-दुक्खाणि ।
देव-गुरु-सत्थवंदण-सुदभेद-सज्झायविघणफलं ॥37॥
नरकतिर्यगादिदुर्गति: दारिद्र्य-विकलाङ्ग-हानि-दु:खानि ।
देव-गुरु-शास्त्रवन्दन-श्रुतभेद-स्वाध्यायविघ्नफलम्॥
अन्वयार्थ : देव-वन्दना, गुरुवन्दना, शास्त्र-वन्दना एवं श्रुतज्ञान के भेद रूपस्वाध्याय । इनमें विघ्न डालने के फल हैं । नरक गति, तिर्यर् गति (आदि) दुर्गति,दरिद्रता, विकलाङ्गता, (सर्वविध) हानि एवं दु:ख ॥37॥