ण हि दाणं ण हि पूया ण हि सीलं ण हि गुणं ण चारित्तं ।
जे जइणा भणिदा ते णेरइया कुमाणुसा तिरिया ॥39॥
न हि दानं न हि पूजा न हि शीलं न हि गुणो न चारित्रम् ।
ये यतिना भणिता: ते नारका: कुमानुषा: तिर्यर्:॥
अन्वयार्थ : जो (लोग) दान नहीं देते, पूजा नहीं करते, शील नहीं पालते, मूलगुणव चारित्र से रहित हैं, वे (भावी जन्म में) नारकी, खोटे मनुष्य व तिर्यर् होते हैं । ऐसायति (जिनेन्द्र देव) ने कहा है ॥39॥