देव-गुरु-धम्म-गुण-चारित्तं तवायारमोक्खगदिभेयं ।
जिणवयण सुदिठ्ठि विणा दीसदि किं जाणदे सम्मं ॥49॥
देव-गुरु-धर्म-गुण-चारित्रं तप-आचार-मोक्षगतिभेदम् ।
जिनवचनं सुदृष्टिं विना दृश्यते किं ज्ञायते सम्यक्॥
अन्वयार्थ : देव, गुरु, धर्म, गुण, चारित्र, तप, आचार व मोक्ष गति के रहस्य कोएवं जिन-वाणी (के रहस्य) को सम्यग्दर्शन के बिना अच्छी तरह क्या देखा, जाना जासकता है? (अर्थात् नहीं) ॥49॥