पुव्वठ्ठिद खवदि कम्मं पविसुदु णो देदि अहिणवं कम्मं ।
इहपरलोयमहप्पं देदि तहा उवसमो भावो ॥52॥
पूर्वस्थितं क्षपयति कर्म प्रवेष्टुं न ददाति अभिनवं कर्म ।
इहपरलोकमाहात्म्यं ददाति तथा उपशमो भाव:॥
अन्वयार्थ : उपशम भाव, पूर्व में स्थित कर्मों का क्षय करताहै और नये कर्म को प्रविष्ट नहीं होने देता । इस प्रकार यह उपशम भाव अपने इहलौकिक वपारलौकिक दोनों प्रकार के माहात्म्य को प्रकट करता है ॥52॥