सम्मादिठ्ठी कालं वोल्लदि वेरग्गणाणभावेहिं ।
मिच्छादिठ्ठी वांछा-दुब्भावालस्सकलहेहिं ॥53॥
सम्यग्दृष्टि: कालं गमयति वैराग्य-ज्ञानभावै: ।
मिथ्यादृष्टि: वाञ्छा-दुर्भावालस्यकलहै:॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दृष्टि जीव वैराग्य व ज्ञानमय भावों द्वारा समय बिताता है, किन्तुमिथ्यादृष्टि जीव का समय विषयों की अभिलाषा, दुर्भावों, आलस्य व कलह (लड़ाई-झगड़े आदि) द्वारा बीतता है ॥53॥