अज्ज्वसप्पिणि भरहे पंचमयाले मिच्छपुव्वया सुलहा ।
सम्मत्तपुव्व सायारणयारा दुल्लहा होंति ॥55॥
अद्य अवसर्पिण्यां भरते पञ्चमकाले मिथ्यात्वपूर्वका: सुलभा: ।
सम्यक्त्वपूर्वका: सागार-अनगारा: दुर्लभा: भवन्ति॥
अन्वयार्थ : वर्तमान अवसर्पिणी काल के पंचम काल में इस भरत क्षेत्र मेंमिथ्यात्वयुक्त जीव सुलभ हैं और सम्यक्त्वयुक्त मुनि व गृहस्थ दुर्लभ हैं ॥55॥