अज्ज्वसप्पिणि भरहे धम्मज्झाणं पमादरहिदोत्ति ।
होदित्ति जिणुद्दिठ्ठं ण हु मण्णइ सो हु कुद्दिठ्ठी ॥56॥
अद्य अवसर्पिण्यां भरते धर्मध्यानं प्रमादरहितमिति ।
भवति जिनोद्दिष्टं न खलु मन्यते स हि कुदृष्टि:॥
अन्वयार्थ : आज अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में धर्मध्यानप्रमादरहित के होता है । ऐसा जो नहीं मानता, वह कुदृष्टि है । ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥56॥