असुहादो णिरयाऊ, सुहभावादो दु सग्गसुहमाओ ।
दुहसुहभावं जाणदु जं ते रुच्चेद तं कुज्ज ॥57॥
अशुभात् नरकायु:, शुभभावात् तु स्वर्ग-सुखमायु: ।
दु:खसुखभावं जानीहि, यत् तुभ्यं रोचेत तत्कुरु॥
अन्वयार्थ : अशुभ भाव से नरकायु प्राप्त होती है और शुभ भाव से स्वर्ग-सुख व(देव)-आयु प्राप्त होती है । सुख व दु:ख के (कारणभूत) भावों को जानो और जो तुम्हेंअच्छा लगे, वह करो ॥57॥