हिंसादिसु कोहादिसु मिच्छाणाणेसु पक्खवाएसु ।
मच्छरिदेसु मदेसु दुरहिणिवेसेसु असुहलेस्सेसु ॥58॥
विकहादिसु रुद्दट्टज्झाणेसु असुयगेसु दंडेसु ।
सल्लेसु गारवेसु य, जो वट्टदि असुहभावो सो ॥59॥
हिंसादिषु क्रोधादिषु मिथ्याज्ञानेषु पक्षपातेषु ।
मात्सर्येषु मदेषु दुरभिनिवेशेषु अशुभलेश्यासु॥
विकथादिषु रौद्रार्तध्यानयो: असूयकासु दंडेषु ।
शल्येषु गारवेषु च, यो वर्तते अशुभभाव: स:॥
अन्वयार्थ : हिंसा आदि में, क्रोध आदि में, मिथ्या ज्ञान में, पक्षपात में, मात्सर्य में, मदों में, दुरभिमानों में, अशुभ लेश्याओं में, विकथाओं में,रौद्र व आर्तध्यान में, ईष्र्या व डाह में, असंयमों में, शल्यों में और मान-बड़ाई में जो भाव रहता है, वह अशुभ भाव है ॥58-59॥