दव्वत्थिकाय-छप्पण तच्चपयत्थेसु सत्तणवगेसु ।
बंधणमोक्खे तक्कारणरूवे बारसणुवेक्खे ॥60॥
रयणत्तयस्सरूवे अज्जकम्मे दयादिसद्धम्मे ।
इच्चेवमाइगे जो वट्टदि सो होदि सुहभावो ॥61॥
अन्वयार्थ : छ: द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों, नौ पदार्थों, बन्ध व मोक्ष,उसके कारण रूप बारह अनुप्रेक्षाओं, रत्नत्रय स्वरूप आर्यकर्म व दया आदि सद्धर्म ।इत्यादि में जो स्थित रहना है, वह सब शुभ भाव है ॥60-61॥