सम्मत्तगुणाइ सुगदि(दी), मिच्छादो होदि दुग्गदी णियमा ।
इदि जाण किमिह बहुणा, जं रुच्चदि तं कुज्जहो ॥62॥
सम्यक्त्वगुणात् सुगति:, मिथ्यात्वात् भवति दुर्गति: नियमात् ।
इति जानीहि किमिह बहुना, यत् रुच्यते तत् कुर्या:॥
अन्वयार्थ : सम्यक्त्व गुण से निश्चित ही सुगति प्राप्त होती है और मिथ्यात्व सेदुर्गति । इसे जानो । अधिक क्या कहें, अब जो तुम्हें अच्छा लगे, उसे करो ॥62॥