उवसमतवभावजुदो णाणी सो ताव संजदो होदि ।
णाणी कसायवसगो असंजदो होदि सो ताव ॥67॥
उपशमतपोभावयुत: ज्ञानी स तावत् संयतो भवति ।
ज्ञानी कषायवशग: असंयतो भवति स तावत्॥
अन्वयार्थ : (मोह के) उपशम (रूप सम्यग्दर्शन) तथा तप-भाव से युक्त ज्ञानीतो (भाव) संयत होता है । किन्तु कषायों के वशीभूत हुआ वह ज्ञानी तो 'असंयमी' होताहै ॥67 ॥