णाणी खवेदि कम्मं णाणबलेणेदि बोल्लदे अण्णाणी ।
वेज्जे भेसज्ज्महं जाणे इदि णस्सदे वाही ॥68॥
ज्ञानी क्षपयति कर्म ज्ञानबलेन । इति वदति अज्ञानी ।
वैद्यो भैषजमहं जानामि इति नश्यते व्याधि:॥
अन्वयार्थ : अज्ञानी कहता है कि ज्ञानी ज्ञान-बल से कर्मों का क्षय कर लेता है ।(किन्तु) 'मैं औषधि जानता हूँ' मात्र इतने से व्याधि (क्या) नष्ट होती है? (अर्थात् नहींहोती) ॥68॥