पुव्वं सेवदि मिच्छामलसोहणहेदु सम्मभेसज्ज्ं ।
पच्छा सेवदि कम्मामयणासण चरिय सम्मभेसज्ज्ं ॥69॥
पूर्वं सेवते (सेवेत) मिथ्यात्वमलशोधनहेतु सम्यक्त्व-भैषज्यम् ।
पश्चात् सेवते (सेवेत) कर्मामयनाशनं चारित्रं सम्यग्भैषज्यम्॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व-मल का शोधन करने हेतु सम्यक्त्व रूपी औषध का सेवनकिया जाता है, उसके बाद कर्म-रोग नष्ट करने वाली सम्यक्चारित्र रूपी औषध का सेवनकिया जाता है ॥69॥