अण्णाणीदो विसयविरत्तादो होदि सयसहस्सगुणो ।
णाणी कसायविरदो विसयासत्तो जिणुद्दिठ्ठं ॥70॥
अज्ञानिन: विषयविरक्ताद् भवति शतसहस्रगुण: ।
ज्ञानी कषायविरतो विषयासक्त:, जिनोद्दिष्टम्॥
अन्वयार्थ : विषय-विरक्त अज्ञानी की अपेक्षा वह ज्ञानी लाख गुना होता है जो विषय-आसक्त भले ही हो, किन्तुकषायों से विरत हो । ऐसा सर्वज्ञ देव ने कहा है ॥70॥