वत्थुसमग्गो णाणी सुपत्तदाणी फलं जहा लहदि ।
णाणसमग्गो विसयपरिचत्तो लहदि तहा चेव ॥74॥
वस्तुसमग्रो ज्ञानी सुपात्रदानी फलं यथा लभते ।
ज्ञानसमग्रो परित्यक्तविषय: लभते तथा चैव॥
अन्वयार्थ : (धन-धान्यादि) पदार्थों से समृद्ध ज्ञानी सुपात्रदान देकर जैसा (प्रशस्त) फल प्राप्त करता है, वैसा ही (सुफल) विषयों का त्याग करने वाला ज्ञान-समृद्ध व्यक्ति प्राप्त करता है ॥74॥