विणओ भत्तिविहीणो महिलाणं रोयणं विणा णेहं ।
चागो वेरग्ग विणा एदे दोवारिया भणिया ॥75॥
भूमहिलाकनकादि-लोभादिविषधर: कथमपि भवेत् ।
सम्यक्त्व-ज्ञान-वैराग्य-औषधमन्त्रेण जिनोद्दिष्टम् ।
अन्वयार्थ : जमीन-जायदाद, कामिनी, र्कान आदि का लोभ रूपी कैसा भी विषधर साँप हो, उसे सम्यक्त्व, सम्यग्ज्ञान व वैराग्य रूपी औषधि या मन्त्र से । यह जिनेन्द्र देव ने कहा है ॥75॥