पुव्वं जो पंचिंदिय-तणु-मण-वचि-हत्थ-पायमुंडाओ ।
पच्छा सिरमुंडाओ सिवगदिपहणायगो होदि ॥76॥
पूर्वं य: पञ्चेन्द्रियतनुमनोवचोहस्तपादमुण्ड: ।
पश्चात् शिरोमुण्ड: शिवगतिपथनायको भवति ॥
अन्वयार्थ : जो (साधु) पहले पाँचों इन्द्रियों, शरीर, मन, वचन, हाथ-पांव को मुँडाता है (प्रभावहीन करता है), बाद में सिर मुँडाता है (केशलोच करता है), वही मोक्षमार्ग का नेता (अग्रगामी) बनता है ॥76॥