पदिभत्तिविहीण सदी भिच्चो जिणसमयभत्तिहीणजइणो ।
गुरुभत्तिहीणसिस्सो दुग्गदिमग्गाणुलग्गओ णियदं ॥77॥
पतिभक्तिविहीना सती, भृत्य:, जिनसमयभक्तिहीनजैन: ।
गुरुभक्तिहीनशिष्य: दुर्गतिमार्गानुलग्नो नियतम् ॥
अन्वयार्थ : पति (भर्ता) की भक्ति से रहित सती (सन्नारी) और (स्वामी कीभक्ति से रहित) नौकर, गुरु-भक्ति से रहित शिष्य, और (उसी तरह) जिनेन्द्र देव व उनकेसिद्धान्त के प्रति भक्ति से रहित जैन (ये) नियमत: दुर्गति-मार्ग में संलग्न हैं॥77॥