गुरुभत्तिविहीणाणं सिस्साणं सव्वसंगविरदाणं ।
ऊसरखेत्ते वविदं सुबीयसमं जाण सव्वणुाणं ॥78॥
गुरुभक्तिविहीनानां शिष्याणां सर्वसङ्गविरतानाम् ।
ऊषरक्षेत्रे उप्तं सुबीजसमं जानीहि सर्वानुठानम् ॥
अन्वयार्थ : समस्त परिग्रहों से विरत शिष्य भी गुरु-भक्ति से रहित हों तो उनकासमस्त अनुठान (व्यवहार चारित्र) उसी प्रकार (निरर्थक) है, जिस प्रकार ऊषर खेत मेंबोया गया अच्छा भी बीज (निरर्थक) होता है॥78॥