रज्ज्ं पहाणहीणं पतिहीणं देसगामरठ्ठबलं ।
गुरुभत्तिहीण-सिस्साणुट्ठाणं णस्सदे सव्वं ॥79॥
राज्यं प्रधानहीनं पतिहीनं देशग्रामराष्ट्रबलम् ।
गुरुभक्तिहीनशिष्यानुठानं नश्यति सर्वम् ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार प्रधान (राजा) के बिना राज्य और सेनापति के बिनादेश, गाँव, राष्ट्र व सैन्य-बल नष्ट (असुरक्षित व शक्तिहीन) हो जाते हैं, उसी प्रकार गुरु-भक्ति से हीन शिष्य का (समस्त) अनुठान नष्ट (निरर्थक) हो जाता है ॥79॥