णियतच्चुवलद्धि विणा सम्मत्तुवलद्धि णत्थि णियमेण ।
सम्मत्तुवलद्धि विणा णिव्वाणं णत्थि णियमेण ॥86॥
निजतत्त्वोपलब्धिं विना सम्यक्त्वोपलब्धि: नास्ति नियमेन ।
सम्यक्त्वोपलब्धिं विना निर्वाणं नास्ति नियमेन ॥
अन्वयार्थ : आत्म-तत्त्व की प्राप्ति के बिना नियमत: सम्यक्त्वकी उपलब्धि नहीं हो पाती । सम्यक्त्व की प्राप्ति के बिना नियमत: निर्वाण प्राप्त नहींहोता ॥86॥