मक्खी सिलिम्मि पडिदो मुवदि जहा तह परिग्गहे पडिदो ।
लोही मूढो खवणो कायकिलेसेसु अण्णाणी ॥88॥
मक्षिका श्लेष्मणि पतिता म्रियते यथा तथा परिग्रहे पतित: ।
लोभी मूढ: क्षपण: कायक्लेशेषु अज्ञानी ॥
अन्वयार्थ : जैसे कफ में गिर कर मक्खी मर जाती है, वैसे ही परिग्रह में आसक्त,लोभी, मूढ़, अज्ञानी मुनि भी शारीरिक कष्टों में ही अपना जीवन गवाँ देता है ॥88॥