णाणब्भासविहीणो सपरं तच्चं ण जाणदे किं पि ।
झाणं तस्स ण होदि हु ताव ण कम्मं खवेदि ण हु मोक्खं ॥89॥
ज्ञानाभ्यासविहीन: स्वपरं तत्त्वं न जानाति किमपि ।
ध्यानं तस्य न भवति हि तावत् न कर्म क्षपयति, न खलु मोक्ष: ॥
अन्वयार्थ : (सम्यक्) ज्ञान के अभ्यास से रहित जीव स्व (आत्म तत्त्व) व पर(आत्मेतर) तत्त्व को कुछ भी नहीं जानता, और आत्म-ध्यान भी उसके निश्चित ही नहींहोता, और जब तक ऐसा होता है तब तक न तो उसका कर्मक्षय होता है और न ही मोक्षमिलता है ॥89॥