पावारम्भणिवित्ती पुण्णारंभे पउत्तिकरणं पि ।
णाणं धम्मज्झाणं जिणभणिदं सव्वजीवाणं ॥91॥
पापारम्भनिवृत्ति: पुण्यारम्भे प्रवृत्तिकरणमपि ।
ज्ञानं धर्मध्यानं जिनभणितं सर्वजीवेभ्य: ॥
अन्वयार्थ : पाप-आरम्भ से निवृत्ति का और पुण्य-कार्य मेंप्रवृत्ति करने का तथा ज्ञान रूप धर्मध्यान का कथन सभी जीवोंके लिए भगवान् जिनेन्द्र ने किया है ॥91॥