तच्चवियारणसीलो मोक्खपहाराहणासहावजुदो ।
अणवरयं धम्मकहापसंगओ होदि मुणिराओ ॥93॥
तत्त्वविचारणशील: मोक्षपथाराधनास्वभावयुत: ।
अनवरतं धर्मकथाप्रसङ्गो भवति मुनिराज: ॥
अन्वयार्थ : मुनिवर तत्त्व का चिन्तन-मनन करने वाले होते हैं, मोक्षमार्ग की आराधनाकरते रहने का भी उनका स्वभाव हुआ करता है, और उनके धर्मकथा का व्यसन रहा करता है ॥93॥