विकहादिविप्पमुक्को आहाकम्मादिविरहिदो णाणी ।
धम्मुद्देसणकुसलो अणुपेहाभावणाजुदो जोई ॥94॥
विकथादिविप्रमुक्त:, आधाकर्मादिविरहित: ज्ञानी ।
धर्मदेशनाकुशल:, अनुप्रेक्षाभावनायुतो योगी ॥
अन्वयार्थ : वे योगी (मुनिराज) विकथा आदि से मुक्त रहते हैं, अध:कर्म आदि(दोषपूर्ण) क्रियाओं से रहित होते हैं, धर्मोपदेश देने में कुशल होते हैं, और बारह अनुप्रेक्षाओंकी भावना (चिन्तन) में निरत रहते हैं ॥94॥