तिव्वं कायकिलेसं कुव्वंतो मिच्छभावसंजुत्तो ।
सव्वण्हुवदेसे सो णिव्वाणसुहं ण गच्छेदि ॥97॥
तीव्रं कायक्लेशं कुर्वन् मिथ्यात्वभावसंयुक्त: ।
सर्वज्ञोपदेशे स निर्वाणसुखं न गच्छति ॥
अन्वयार्थ : तीव्र कायक्लेश करता हुआ भी (यदि जीवात्मा) मिथ्यात्व भाव सेयुक्त होता है तो वह निर्वाण-सुख को प्राप्त नहीं करता । ऐसा सर्वज्ञ भगवान् के उपदेश में(निर्दिष्ट) है ॥97॥