रायादिमलजुदाणं णियप्परूवं ण दिस्सदे किं पि ।
समलादरिसे रूवं ण दिस्सदे जहा तहा णेयं ॥98॥
रागादिमलयुतानां निजात्मरूपं न दृश्यते किमपि ।
समलादर्शे रूपं न दृश्यते यथा तथा ज्ञेयम् ॥
अन्वयार्थ : राग आदि मल से युक्त जीवों को निज आत्म-स्वरूपकुछ भी दिखाई नहीं देता, जैसे मलिन दर्पण में रूप दिखाई नहीं देता, उसी तरह समझना चाहिए ॥98॥