दंडत्तय सल्लत्तय मंडिदमाणो असूयगो साहू ।
भंडणजायणसीलो हिंडदि सो दीहसंसारम ॥99॥
दण्डत्रयेण शल्यत्रयेण मण्डितमान: असूयक: साधु: ।
भण्डन-याचनशील: हिण्डते स दीर्घसंसारम ॥
अन्वयार्थ : तीन दण्डों व तीन शल्यों से युक्त, अभिमान से पूर्ण, ईष्र्यालु, तथा कलह व याचना के स्वभाववाला जो साधु होता है, वह दीर्घ संसार में भटकता रहता है ॥99॥