देहादिसु अणुरत्ता विसयासत्ता कसायसंजुत्ता ।
आदसहावे सुत्ता, ते साहू सम्मपरिचत्ता ॥100॥
देहादिषु अनुरक्ता: विषयासक्ता: कषायसंयुक्ता: ।
आत्मस्वभावे सुप्ता: ते साधव: सम्यक्त्वपरित्यक्ता: (परित्यक्त्सम्यक्त्वा:) ॥
अन्वयार्थ : जो शरीर आदि में अनुरक्त हैं, विषयों में आसक्त हैं, कषाय से युक्त हैंऔर आत्म-स्वभाव में सोये हुए हैं, वे साधु सम्यक्त्व से रहित हैं ॥100॥