जोइसवेज्जमंतोवजीवणं वायवस्स ववहारं ।
धणधण्णपरिग्गहणं समणाणं दूसणं होदि ॥103॥
ज्योतिर्विद्यामन्त्रोपजीवनं वातिकस्य व्यवहार: ।
धनधान्यपरिग्रहणं श्रमणानां दूषणं भवति ॥
अन्वयार्थ : जो ज्योतिष विद्या, मन्त्र-विद्या द्वारा जीविका चलाना, वातविकारसे ग्रस्त (भूत-प्रेतादि से आविष्ट की चिकित्सा करने) का व्यापार करना, धन-धान्य कापरिग्रह करना । ये श्रमण के दूषण हैं ॥103॥