भुंजेदि जहालाहं जदि णाणसंजमणिमित्तं ।
झाणज्झयणणिमित्तं अणयारो मोक्खमग्गरदो ॥107॥
भुंक्ते यथालाभं यदि ज्ञानसंयमनिमित्तम् ।
ध्यानाध्ययननिमित्तम्, अनगार: मोक्षमार्गरत: ॥
अन्वयार्थ : यदि यथायोग्य थोड़ा-बहुत जो मिल जाता है तोमोक्षमार्ग में स्थित अनगार अपने ज्ञान व संयम की आराधना के लिए या ध्यान वअध्ययन की सिद्धि के लिए उसका सेवन करता है ॥107॥