उदरग्गिसमनमक्खमक्खण-गोयार-सब्भपूरण-भमरं ॥
णाऊण तप्पयारम णिच्चेवं भुंजदे भिक्खू ॥108॥
उदराग्निशमनम्, अक्षम्रक्षण-गोचार-श्वभ्रपूरण-भ्रामरम् ।
ज्ञात्वा तत्प्रकारान् नित्यमेव भुंक्ते भिक्षु: ॥
अन्वयार्थ : (1) उदराग्नि का शमन, (2) इन्द्रियों को स्नेह से स्निग्ध करना, (3) गोचरी(गौ की तरह चारा खाना), (4) पेट के गड्ढे को मात्र भरना, (5) भौंरम की तरह (बिनाकिसी को कष्ट दिये) थोड़ा-थोड़ा लेना । इन (भिक्षा के पाँच) प्रकारों को जानकर नित्यही साधु आहार-ग्रहण किया करता है ॥108॥