उदरग्गिसमनमक्खमक्खण-गोयार-सब्भपूरण-भमरं ॥
णाऊण तप्पयारम णिच्चेवं भुंजदे भिक्खू ॥108॥
उदराग्निशमनम्, अक्षम्रक्षण-गोचार-श्वभ्रपूरण-भ्रामरम् ।
ज्ञात्वा तत्प्रकारान् नित्यमेव भुंक्ते भिक्षु: ॥
अन्वयार्थ : उदराग्नि का शमन, इन्द्रियों को स्नेह से स्निग्ध करना, गोचरी, पेट के गड्ढे को मात्र भरना, भौंरम की तरह थोड़ा-थोड़ा लेना । इन प्रकारों को जानकर नित्यही साधु आहार-ग्रहण किया करता है ॥108॥