बहुदुक्खभायणं कम्मकारणं भिण्णमप्पणो देहं ।
तं देहं धम्माणुाणकारणं चेदि पोसदे भिक्खू ॥110॥
बहुदु:खभाजनं कर्मकारणं भिन्नमात्मनो देहम् ।
तद् देहं धर्मानुठानकारणं चेति पोषति भिक्षु: ॥
अन्वयार्थ : वह अनेक दु:खों का पात्र है, कर्मों (कर्मबन्धन) का कारण है, और वह आत्मा सेभिन्न (पृथक्) है । चूँकि वह शरीर भी धर्म-सेवन का कारण (बन सकता) है, (मात्र)इसलिए भिक्षु उसका पोषण (आहारादि द्वारा) करता है॥110 ॥