संजमतवझाणज्झयणविणाणए गिण्हदे पडिगहणं ।
वज्जदि गिण्हदि भिक्खू ण सक्कदे वज्जिदुं दुक्खं ॥111 ॥
संयमतपोध्यानाध्ययनविज्ञानाय गृह्वाति प्रतिग्रहणम् ।
वर्जयति गृह्वाति भिक्षु: न शक्नोति वर्जितुं दु:खम् ॥
अन्वयार्थ : मुनि संयम, तप, ध्यान, अध्ययन (स्वाध्याय) एवं भेदविज्ञान (कीसिद्धि) के लिए आहार ग्रहण करते हैं । यदि इस (प्रयोजन) को वे छोड़ते हैं और (आहार)लेते हैं तो वे दु:ख को छोड़ नहीं सकते (कभी वह दु:ख-मुक्त नहीं हो पाते) ॥111॥