कोहेण य कलहेण य जायण सीलेण संकिलिसेण ।
रुद्देण य रोसेण य भुंजदि किं विंतरो भिक्खू ॥112॥
क्रोधेन च कलहेन याचनाशीलेन संक्लेशेन ।
रौद्रेण च रोषेण च भुंक्ते किं व्यन्तरो भिक्षु: ॥
अन्वयार्थ : क्रोध, कलह, याचनाशीलता, संक्लेश, रौद्र व रोष परिणाम के साथ यदि आहार ग्रहण करम तो क्या वह भिक्षु है? वह व्यन्तर है ॥112॥