उवसमणिरीहझाणज्झयणादिमहागुणा जहा दिठ्ठा ।
जेसिं ते मुणिणाहा उत्तमपत्ता तहा भणिया ॥115॥
उपशमनिरीहध्यानाध्ययनादिमहागुणा यथा दृष्टा: ।
येषां ते मुनिनाथा उत्तमपात्राणि तथा भणिता: ॥
अन्वयार्थ : जैसे जिनमें उपशम भाव, निरीहता , ध्यान वअध्ययन आदि महान् गुण दृष्टिगोचर होते हैं, तदनुरूप वे मुनिनाथ उत्तम पात्र कहे गये हैं ॥115॥