दंसणसुद्धो धम्मज्झाणरदो संगवज्ज्दिो णिस्सल्लो ।
पत्तविसेसो भणिदो सो गुणहीणो दु विवरीदो ॥117॥
दर्शनशुद्ध:, धर्मध्यानरत:, सङ्गवर्जित: नि:शल्य: ।
पात्रविशेष: भणित: स गुणहीनस्तु विपरीत: ॥
अन्वयार्थ : निर्दोष सम्यग्दर्शन वाले, धर्मध्यान में रत, परिग्रह से रहित, (तीन)शल्यों से रहित । (इन्हें) विशेष पात्र कहा गया है । जो इन गुणों से हीन है, वह विपरीतयानी अपात्र होता है ॥117॥