सम्मादिगुणविसेसं पत्तविसेसं जिणेहि णिद्दिठ्ठं ।
तं जाणिऊण देदि सुदाणं जो सो हु मोक्खरदो ॥118॥
सम्यक्त्वादिगुणविशेष: पात्रविशेष: जिनै: निर्दिष्ट: ।
तद् ज्ञात्वा ददाति सुदानं य: स खलु मोक्षरत: ॥
अन्वयार्थ : जिसमें सम्यक्त्व आदि विशेष गुण हैं, उसे जिनेन्द्र देव ने विशेष पात्र कहा है । इसप्रकार जान कर जो सुदान देता है, वही निश्चय से मोक्षमार्ग में रत है ॥118॥