खाई-पूया-लाहं सक्काराइं किमिच्छसे जोई ।
इच्छसि जदा परलोयं, तेहिं किं तुज्झ परलोयं ॥122॥
ख्याति-पूजा-लाभं सत्कारादि किमिच्छसि योगिन्! ।
इच्छसि यदा परलोकं तै: किं तव परलोक: ॥
अन्वयार्थ : हे योगी! यदि परलोक को (सुधारना) चाहते हो तो कीर्ति, पूजा,लाभ, सत्कार आदि की चाह क्यों करते हो? (उन सब से) क्या तुम्हारा परलोक (अच्छा)होने वाला है? (अर्थात् नहीं होने वाला है ।) ॥122॥