कम्मादविहावसहावगुणं जो भाविदूण भावेण ।
णियसुद्धप्पा रुच्चदि तस्स य णियमेण होदि णिव्वाणं ॥123॥
कर्मात्मविभावस्वभावगुणं यो भावयित्वा भावेन ।
निजशुद्धात्मा रोचते तस्य च नियमेन भवति निर्वाणम्॥
अन्वयार्थ : जो मुनि कर्म-जनित विभाव और स्वभाव एवं गुण की भावपूर्वकभावना (बार-बार चिन्तन आदि) करता है, तथा निज शुद्धात्मा में रुचि रखता है, उसकोनियम से निर्वाण प्राप्त होता है ॥123॥