मूलुत्तरुत्तरुत्तरदव्वादो भावकम्मदो मुक्को ।
आसवबंधसंवरणिज्ज्र जाणेदि किं बहुणा ॥124॥
मूलोत्तरोत्तरोत्तरद्रव्यतो भावकर्मतो मुक्त: ।
आस्रवबन्ध-संवर-निर्जरा: जानाति किम्बहुना ॥
अन्वयार्थ : जो आस्रव, बन्ध , संवर व निर्जरा तत्त्वों को जानता है, वह कर्मोंकी मूल प्रकृतियाँ, उत्तर प्रकृतियाँ, उत्तरोत्तर द्रव्यकर्म व भावकर्म । इनसे मुक्त होता है(मुक्ति प्राप्त करता है या स्वयं को 'शुद्ध' मुक्त समझता है) ॥124॥